क्या है बंधन और कैसे पायें इनसे मुक्ति ? नजर कैसे उतारें ?

Responsive Ad Here

क्या है बंधन और कैसे पायें इनसे मुक्ति ? 

नजर कैसे उतारें ?

क्या हैं बंधन और उनके उपाय?

बंधन अर्थात् बांधना। जिस प्रकार रस्सी से बांध देने से व्यक्ति असहाय हो कर कुछ कर नहीं पाता, उसी प्रकार किसी व्यक्ति, घर, परिवार, व्यापार आदि को तंत्र-मंत्र आदि द्वारा अदृश्य रूप से बांध दिया जाए तो उसकी प्रगति रुक जाती है और घर परिवार की सुख शांति बाधित हो जाती है। ये बंधन क्या हैं और इनसे मुक्ति कैसे पाई जा सकती है जानने केलिए पढ़िए यह आलेख…

मानव अति संवेदनशील प्राणी है। प्रकृति और भगवान हर कदम पर हमारी मदद करते हैं। आवश्यकता हमें सजग रहने की है। हम अपनी दिनचर्या में अपने आस-पास होने वाली घटनाओं पर नजर रखें और मनन करें। यहां बंधन के कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं।

किसी के घर में ८-१० माह का छोटा बच्चा है। वह अपनी सहज बाल हरकतों से सारे परिवार का मन मोह रहा है। वह खुश है, किलकारियां मार रहा है। अचानक वह सुस्त या निढाल हो जाता है। उसकी हंसी बंद हो जाती है। वह बिना कारण के रोना शुरू कर देता है, दूध पीना छोड़ देता है। बस रोता और चिड़चिड़ाता ही रहता है। हमारे मन में अनायास ही प्रश्न आएगा कि ऐसा क्यों हुआ?

किसी व्यवसायी की फैक्ट्री या व्यापार बहुत अच्छा चल रहा है। लोग उसके व्यापार की तरक्की का उदाहरण देते हैं। अचानक उसके व्यापार में नित नई परेशानियां आने लगती हैं। मशीन और मजदूर की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जो फैक्ट्री कल तक फायदे में थी, अचानक घाटे की स्थिति में आ जाती है। व्यवसायी की फैक्ट्री उसे कमा कर देने के स्थान पर उसे खाने लग गई। हम सोचेंगे ही कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?

किसी परिवार का सबसे जिम्मेदार और समझदार व्यक्ति, जो उस परिवार का तारणहार है, समस्त परिवार की धुरी उस व्यक्ति के आस-पास ही घूम रही है, अचानक बिना किसी कारण के उखड़ जाता है। बिना कारण के घर में अनावश्यक कलह करना शुरू कर देता है। कल तक की उसकी सारी समझदारी और जिम्मेदारी पता नहीं कहां चली जाती है। वह परिवार की चिंता बन जाता है। आखिर ऐसा क्यों हो गया?

कोई परिवार संपन्न है। बच्चे ऐश्वर्यवान, विद्यावान व सर्वगुण संपन्न हैं। उनकीसज्जनता का उदाहरण सारा समाज देता है। बच्चे शादी के योग्य हो गए हैं, फिर भी उनकी शादी में अनावश्यक रुकावटें आने लगती हैं। ऐसा क्यों होता है?

आपके पड़ोस के एक परिवार में पति-पत्नी में अथाह प्रेम है। दोनों एक दूसरे के लिए पूर्ण समर्पित हैं। आपस में एक दूसरे का सम्मान करते हैं। अचानक उनमें कटुता व तनाव उत्पन्न हो जाता है। जो पति-पत्नी कल तक एक दूसरे के लिए पूर्ण सम्मान रखते थे, आज उनमें झगड़ा हो गया है। स्थिति तलाक की आ गई है। आखिर ऐसा क्यों हुआ?

हमारे घर के पास हरा भरा फल-फूलों से लदा पेड़ है। पक्षी उसमें चहचहा रहे हैं। इस वृक्ष से हमें अच्छी छाया और हवा मिल रही है। अचानक वह पेड़ बिना किसी कारण के जड़ से ही सूख जाता है। निश्चय ही हमें भय की अनुभूति होगी और मन में यह प्रश्न उठेगा कि ऐसा क्यों हुआ?

हमें अक्सर बहुत से ऐसे प्रसंग मिल जाएंगे जो हमारी और हमारे आसपास की व्यवस्था को झकझोर रहे होंगे, जिनमें क्यों” की स्थिति उत्पन्न होगी। विज्ञान ने एक नियम प्रतिपादित किया है कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। हमें निश्चय ही मनन करना होगा कि उपर्युक्त घटनाएं जो हमारे आसपास घटित हो रही हैं, वे किन क्रियाओं की प्रतिक्रियाएं हैं? हमें यह भी मानना होगा कि विज्ञान की एक निश्चित सीमा है। अगर हम परावैज्ञानिक आधार पर इन घटनाओं को विस्तृत रूप से देखें तो हम निश्चय ही यह सोचने पर विवश होंगे कि कहीं यह बंधन या स्तंभन की परिणति तो नहीं है ! यह आवश्यक नहीं है कि यह किसी तांत्रिक अभिचार के कारण हो रहा हो। यह स्थिति हमारी कमजोर ग्रह स्थितियों व गण के कारण भी उत्पन्न हो जाया करती है। हम भिन्न श्रेणियों के अंतर्गत इसका विश्लेषण कर सकते हैं। इनके अलग-अलग लक्षण हैं। इन लक्षणों और उनके निवारण का संक्षेप में वर्णन यहां प्रस्तुत है:
  1. कार्यक्षेत्र का बंधन, स्तंभन या रूकावटें
  2. दुकान/फैक्ट्री/कार्यस्थल की बाधाओं के लक्षण
  3. किसी दुकान या फैक्ट्री के मालिक का दुकान या फैक्ट्री में मन नहीं लगना।
  4. ग्राहकों की संख्या में कमी आना।
  5. आए हुए ग्राहकों से मालिक का अनावश्यक तर्क-वितर्क-कुतर्क और कलह करना।
  6. श्रमिकों व मशीनरी से संबंधित परेशानियां।
  7. मालिक को दुकान में अनावश्यक शारीरिक व मानसिक भारीपन रहना।
  8. दुकान या फैक्ट्री जाने की इच्छा न करना।
  9. तालेबंदी की नौबत आना।
  10. दुकान ही मालिक को खाने लगे और अंत में दुकान बेचने पर भी नहीं बिके।
  11. कार्यालय बंधन के लक्षण
  12. कार्यालय बराबर नहीं जाना।
  13. साथियों से अनावश्यक तकरार।
  14. कार्यालय में मन नहीं लगना।
  15. कार्यालय और घर के रास्ते में शरीर में भारीपन व दर्द की शिकायत होना।
  16. कार्यालय में बिना गलती के भी अपमानित होना।
  17. घर-परिवार में बाधा के लक्षण
  18. परिवार में अशांति और कलह।
  19. बनते काम का ऐन वक्त पर बिगड़ना।
  20. आर्थिक परेशानियां।
  21. योग्य और होनहार बच्चों के रिश्तों में अनावश्यक अड़चन।
  22. विषय विशेष पर परिवार के सदस्यों का एकमत न होकर अन्य मुद्दों पर कुतर्क करके आपस में कलह कर
  23. विषय से भटक जाना।
  24. परिवार का कोई न कोई सदस्य शारीरिक दर्द, अवसाद, चिड़चिड़ेपन एवं निराशा का शिकार रहता हो।
  25. घर के मुख्य द्वार पर अनावश्यक गंदगी रहना।
  26. इष्ट की अगरबत्तियां बीच में ही बुझ जाना।
  27. भरपूर घी, तेल, बत्ती रहने के बाद भी इष्ट का दीपक बुझना या खंडित होना।
  28. पूजा या खाने के समय घर में कलह की स्थिति बनना।
  29. व्यक्ति विशेष का बंधन
  30. हर कार्य में विफलता।
  31. हर कदम पर अपमान।
  32. दिल और दिमाग का काम नहीं करना।
  33. घर में रहे तो बाहर की और बाहर रहे तो घर की सोचना।
  34. शरीर में दर्द होना और दर्द खत्म होने के बाद गला सूखना।
हमें मानना होगा कि भगवान दयालु है। हम सोते हैं पर हमारा भगवान जागता रहता है। वह हमारी रक्षा करता है। जाग्रत अवस्था में तो वह उपर्युक्त लक्षणों द्वारा हमें बाधाओं आदि का ज्ञान करवाता ही है, निद्रावस्था में भी स्वप्न के माध्यम से संकेत प्रदान कर हमारी मदद करता है। आवश्यकता इस बात की है कि हम होश व मानसिक संतुलन बनाए रखें। हम किसी भी प्रतिकूल स्थिति में अपने विवेक व अपने इष्ट की आस्था को न खोएं, क्योंकि विवेक से बड़ा कोई साथी और भगवान से बड़ा कोई मददगार नहीं है।

क्या होता हें उतारा करना

उतारा शब्द का तात्पर्य व्यक्ति विशेष पर हावी बुरी हवा अथवा बुरी आत्मा, नजर आदि के प्रभाव को उतारने से है। उतारे आमतौर पर मिठाइयों द्वारा किए जाते हैं, क्योंकि मिठाइयों की ओर ये श्ीाघ्र आकर्षित होते हैं।

उतारा करने की विधि :

उतारे की वस्तु सीधे हाथ में लेकर नजर दोष से पीड़ित व्यक्ति के सिर से पैर की ओर सात अथवा ग्यारह बार घुमाई जाती है। इससे वह बुरी आत्मा उस वस्तु में आ जाती है। उतारा की क्रिया करने के बाद वह वस्तु किसी चौराहे, निर्जन स्थान या पीपल के नीचे रख दी जाती है और व्यक्ति ठीक हो जाता है।

किस दिन किस मिठाई से उतारा करना चाहिए, इसका विवरण यहां प्रस्तुत है :

  • रविवार को तबक अथवा सूखे फलयुक्त बर्फी से उतारा करना चाहिए।
  • सोमवार को बर्फी से उतारा करके बर्फी गाय को खिला दें।
  • मंगलवार को मोती चूर के लड्डू से उतार कर लड्डू कुत्ते को खिला दें।
  • बुधवार को इमरती से उतारा करें व उसे कुत्ते को खिला दें।
  • गुरुवार को सायं काल एक दोने में अथवा कागज पर पांच मिठाइयां रखकर उतारा करें। उतारे के बाद उसमें छोटी इलायची रखें व धूपबत्ती जलाकर किसी पीपल के वृक्ष के नीचे पश्चिम दिशा में रखकर घर वापस जाएं। ध्यान रहे, वापस जाते समय पीछे मुड़कर न देखें और घर आकर हाथ और पैर धोकर व कुल्ला करके ही अन्य कार्य करें।
  • शुक्रवार को मोती चूर के लड्डू से उतारा कर लड्डू कुत्ते को खिला दें या किसी चौराहे पर रख दें।
  • शनिवार को उतारा करना हो तो इमरती या बूंदी का लड्डू प्रयोग में लाएं व उतारे के बाद उसे कुत्ते को खिला दें।
इसके अतिरिक्त रविवार को सहदेई की जड़, तुलसी के आठ पत्ते और आठ काली मिर्च किसी कपड़े में बांधकर काले धागे से गले में बांधने से ऊपरी हवाएं सताना बंद कर देती हैं।

नजर उतारने अथवा उतारा आदि करने के लिए कपूर, बूंदी का लड्डू, इमरती, बर्फी, कड़वे तेल की रूई की बाती, जायफल, उबले चावल, बूरा, राई, नमक, काली सरसों, पीली सरसों मेहंदी, काले तिल, सिंदूर, रोली, हनुमान जी को चढ़ाए जाने वाले सिंदूर, नींबू, उबले अंडे, गुग्गुल, शराब, दही, फल, फूल, मिठाइयों, लाल मिर्च, झाडू, मोर छाल, लौंग, नीम के पत्तों की धूनी आदि का प्रयोग किया जाता है।

स्थायी व दीर्घकालीन लाभ के लिए संध्या के समय गायत्री मंत्र का जप और जप के दशांश का हवन करना चाहिए। हनुमान जी की नियमित रूप से उपासना, भगवान शिव की उपासना व उनके मूल मंत्र का जप, महामृत्युंजय मंत्र का जप, मां दुर्गा और मां काली की उपासना करें। स्नान के पश्चात् तांबे के लोटे से सूर्य को जल का अर्य दें। पूर्णमासी को सत्यनारायण की कथा स्वयं करें अथवा किसी कर्मकांडी ब्राह्मण से सुनें। संध्या के समय घर में दीपक जलाएं, प्रतिदिन गंगाजल छिड़कें और नियमित रूप से गुग्गुल की धूनी दें। प्रतिदिन शुद्ध आसन पर बैठकर सुंदर कांड का पाठ करें। किसी के द्वारा दिया गया सेव व केला न खाएं। रात्रि बारह से चार बजे के बीच कभी स्नान न करें।

बीमारी से मुक्ति के लिए नीबू से उतारा करके उसमें एक सुई आर-पार चुभो कर पूजा स्थल पर रख दें और सूखने पर फेंक दें। यदि रोग फिर भी दूर न हो, तो रोगी की चारपाई से एक बाण निकालकर रोगी के सिर से पैर तक छुआते हुए उसे सरसों के तेल में अच्छी तरह भिगोकर बराबर कर लें व लटकाकर जला दें और फिर राख पानी में बहा दें।

उतारा आदि करने के पश्चात भलीभांति कुल्ला अवश्य करें।

इस तरह, किसी व्यक्ति पर पड़ने वाली किसी अन्य व्यक्ति की नजर उसके जीवन को तबाह कर सकती है। नजर दोष का उक्त लक्षण दिखते ही ऊपर वर्णित सरल व सहज उपायों का प्रयोग कर उसे दोषमुक्त किया जा सकता है।
Responsive Ad Here

Author:

velit viverra minim sed metus egestas sapien consectetuer, ac etiam bibendum cras posuere pede placerat, velit neque felis. Turpis ut mollis, elit et vestibulum mattis integer aenean nulla, in vitae id augue vitae.