शाबर लंकेश दर्शन प्रयोग

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शाबर लंकेश दर्शन प्रयोग




रावण | एक ऐसा नाम जो की आज घर घर मे प्रचलित है, लेकिन एक तंत्र साधक के लिए ये नाम कोई की व्याख्या पूर्ण रूप से बदल जाती है| वह व्यक्तित्व जो की एक महान शिव भक्त था, शैव तन्त्रो मे अत्यधिक उच्चता प्राप्त व्यक्ति जिस के सामने शिव हमेशा ही प्रत्यक्ष रहते थे. जिसने ‘श्रीशंकरं’, ‘उड्डीश’, ‘लंकेश’,‘तंत्रेश’ जैसे अत्यधिक महान तंत्र ग्रंथो की रचना की थि. ज्योतिष विज्ञान व् नक्षत्र तंत्र मे सिद्ध हस्त वह आचार्य अपने आप मे अजय था जिसकी भृकुटी संकेत मात्र से ग्रह अपनी स्थिति को परावर्तित कर लेते थे ज्योतिष के क्षेत्र मे रुचिवान व्यक्ति इस महान सिद्ध के ज्ञान के बारे मे रावण संहिता को देख कर ही अंदाज़ लगा सकते है. संगीत का असाधारण ज्ञान तथा संगीत के माध्यम से सम्प्पन होने वाली तांत्रिक क्रियाओ का भी एक वृहद ज्ञानी जिस विषय पर उसने अपने ग्रन्थ‘रावणीय’ मे अपने असाधारण व्यक्तित्व का परिचय दिया है. काल विज्ञान के क्षेत्र मे भी रावणीय निर्णय अपने आप मे बेजोड ग्रन्थ है. नितिशास्त्र मे उसने भाष्य लिखा जो की राज्य किस प्रकार से चलाया जाय उसके सिद्धांत पर आधारित है. इतिहास गवाह है की लंका मे उसके राज्य के समय विश्व के श्रेष्ठतम राज्यों मे वह एक था. पारद विज्ञान के माध्यम से अपनी पूरी लंका को सोने की बना दी थि, साथ ही साथ मृत्युंजय पारद की वजह से उसे चिरंजीवी स्थिति प्राप्त हुई थि. पारद के सिद्धआचार्यो मे आज भी उसकी गणना लंकेश नाम से होती है. उसका लंकेश सिद्धांत तथा अन्य कई ग्रन्थ अपने आप मे बेजोड है. कर्मकांड के क्षेत्र मे भी उसने ऊंचाईयो को प्राप्त किया था. इसके अलावा उसे यन्त्र विज्ञान का भी अद्भुत ज्ञान था, त्रियक विमान जैसे जटिल और असाधारण उपकरणों पर उसने शोध कर कई विमान का निर्माण किया था, साथ ही साथ विभ्भिन यंत्रो के वह ज्ञाता रहे है. सदगुरुदेव ने भी कई बार इस व्यक्ति के प्रशंशा मे कहा है की तंत्र के क्षेत्र मे विश्वामित्र रावण और त्रिजटा के आगे किसी की गति नहीं है. एक सामान्य से भिक्षुक परिवार मे जन्म लेके एक साधक अपने आप पर ही तूल जाए तो क्या कर दिखा सकता है वह जनमानस के मध्य रख कर उसने एक नए ही अध्याय की रचना की. आज यह ग्रन्थ भले ही अप्राप्य हो गए है लेकिन लुप्त नहीं, कई तांत्रिक घरानों तथा गुप्त आश्रमो ने इसकी बराबर रक्षा की है. सिद्धाचार्य रावण प्रणित साधनाओ का विवरण तो यदा कदा मिल जाता है लेकिन उन से सबंधित साधनाओ का आभाव ही है. सदगुरुदेव ने कई विधिया अपने शिष्यों के मध्य प्रसाद रूप मे दी है जिन से सिद्धो का आवाहन संभव होता है. ऐसे ही उन्होंने विश्वामित्र, नागार्जुन, वसिष्ठ जैसे महा ऋषियो के आवाहन की कई विधियाँ स्पष्ट की थि. साथ ही साथ उन्होंने रावण से सबंधित ऐसा लघु विधान भी प्रदत किया था जिसके माध्यम से सिद्धाचार्यलंकेश स्वप्न मे या भावावस्था मे दर्शन दे कर साधक को आशीर्वचन प्रदान करते है. सदगुरुदेव से माफ़ीसह प्रार्थना करते हुए और सिद्धाचार्यरावण को श्रद्धासुमन प्रणाम करते हुए आप सब के मध्य यह विधान प्रस्तुत कर रहा हू.

साधक इस साधना को सोमवार रात्रि मे १० बजे के बाद शुरू करे. अपने सामने पारदशिवलिंग और भगवान शिव का कोई फोटो स्थापित करे और उसका पूजन करे. उसके बाद मन ही मन सिद्धाचार्यरावण को दर्शन के लिए प्रार्थना कर निम्न मंत्र की ११ माला रुद्राक्ष माला से करे. इस साधना मे दिशा उत्तर रहे, वस्त्र व् आसन सफ़ेद रहे.


मंत्र : ओम लंकेशसिद्ध लंका थापलो शिव शम्भू को सेवक दास तिहारो दर्शय दर्शय आदेश


यह क्रम अगले सोमवार तक (कुल ८ दिन ) नियमित रहे. साधना के बीच मे या आखरी दिन साधक को लंकेश के दर्शन हो जाते है. माला को विसर्जित ना करे, उसे पहना जा सकता है.


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