उच्चाटन प्रयोग - एक बहुउपयोगी तंत्र प्रयोग

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उच्चाटन प्रयोग - एक बहुउपयोगी तंत्र प्रयोग

उच्चाटन अर्थात उचटना या हटना मन का किसी वस्तु,स्थान या व्यक्ति से किसी क्रिया के परिणाम स्वरुप किसी व्यक्ति का मन उचट जाना उच्चाटन कहलाता है | किसी से आपका विवाद हो गया मनमुटाव होगया आप उससे दूर हो गए किसी के किसी गुण को नापसंद करते है उससे दूर रहते है यह सामान्य मन का उचटना है उससे या उसके गुणों से किन्तु यही जब किसी तांत्रिक क्रिया के फलस्वरूप हो जाए तो उच्चाटन क्रिया हो जाती है यह एक तांत्रिक षट्कर्म है जिसमे किसी व्यक्ति के मन में किसी स्थान, व्यक्ति, गुण या वस्तु के प्रति अरुचि उत्पन्न कर दी जाती है,फलतः व्यक्ति उस निर्देशित व्यक्ति या वस्तु या स्थान से हटने लगता है,उसका लगाव समाप्त हो जाता है अरुचि उत्पन्न हो जाती है उसे वहां अशांति लगती है उद्विग्नता होती है दूर रहना अच्छा लगता है अर्थात प्रतिकर्षण उत्पन्न हो जाता है दोनों के बीच उच्चाटन का प्रयोग बेहद उपयोगी है

जब किसी के घर का कोई सदस्य किसी अन्य के प्रति वशीभूत हो जाए, रास्ते से भटक जाए, गलत संगत में पड जाए, किसी बुरी आदत का आदि हो जाए, किसी के बहकावे में आ जाए पति-पत्नी में से किसी का लगाव किसी अन्य से हो जाए घर परिवार बिखरने की स्थिति आ जाए पारिवारिक मान-सम्मान दाब पर लग जाए प्रतिष्ठा पर आच आ रही हो धन-संपत्ति का अपव्यय गलत कार्यों में किसी के द्वारा किया जा रहा हो कोई ऐसे सम्बन्ध का इच्छुक हो जिससे पारिवारिक मान-मर्यादा ,सस्कार का उल्लंघन हो रहा हो कोई किसी पर अनावश्यक आसक्त हो कोई किसी को अकारण परेशान कर रहा हो किसी से किसी की दुरी बनाने की आवश्यकता हो किसी का मन किसी के प्रति उचाटना हो किसी पर किसी बाहरी हवा आदि का प्रभाव हो उसे उचाटना हो बुरे ग्रहों के प्रभाव का उच्चाटन करना हो ग्रह प्रतिकूलता का उच्चाटन करना हो दरिद्रता -अशांति-कलह का उच्चाटन करना हो हटाना हो किसी ने किसी की संपत्ति पर कब्जा कर रखा हो और न हट रहा हो उसका मन उस संपत्ति से उच्चाटित करना हो आदि आदि समस्याए हो तो उच्चाटन का प्रयोग बेहद लाभदायक हो सकता है

उच्चाटन एक उग्र तांत्रिक क्रिया है जिसमे प्रकृति की उग्र शक्तियों देवी-देवता का सहयोग लिया जाता है जबकि वशीकरण आदि में सौम्य शक्तियों का इसलिए उच्चाटन की क्रिया किसी योग्य जानकार के मार्गदर्शन में ही संभव है इसकी क्रियाप्रणाली प्रतिकर्षण के सिद्धांत पर आधारित है जिसमे किसी गुण स्थिति स्थान व्यक्ति धारणा के प्रति देवी-देवता की शक्ति के सहयोग से वितृष्णा अरुचि दुरी अनाचाहापन उत्पन्न कर दिया जाता है फलतःलक्षित व्यक्ति के स्वभाव में पसंद-नापसंद में किसी गुण या व्यक्ति या स्थान के प्रति अरुचि उत्पन्न हो जाती है व्यक्ति उससे दूर होने का प्रयत्न करने लगता है उस स्थान गुण या व्यक्ति के साथ होने पर उसे घबराहट, उद्विग्नता, उलझन, अशांति होने लगती है और वह उससे दूर भागने लगता है

यह क्रिया रोगों को हटाने अर्थात उच्चाटित करने में ग्रह पीड़ा को दूर करने में नशे या बुरी संगत को छुडाने में किसी का किसी की संपत्ति से अनावश्यक जुड़ाव-लगाव-कब्ज़ा समाप्त कराने में भी बहुत उपयोगी हो सकती है यद्यपि सभी तांत्रिक क्रियाओं के सदुपयोग और दुरुपयोग दोनों होते है पर यदि नैतिकता विवेक को बरकरार रखने हुए इनका आवश्यकतानुसार सदुपयोग किया जाए तो ये घर-परिवार व्यक्ति के जीवन की शांति, खुशहाली और उन्नति में बहुत सहायक हो सकते है
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